Thursday 21 February 2013

जीवन सत्य

शाख पर बैठी चिड़िया चुपके से कुछ कह गई
काहे को मन इत उत भरमाए ,
जग जा अब तो भोर की किरण हो गई ।
पूरब से उतरे सूरज देवा ,
 लेकर अपना उड़नखटोला  धूप सुहानी खिल गई ।
चल दिये सब पंछी उन्मुक्त पसार ,
गगन मे अपने पंखों का जाल , एक लय सी हो गई ।
सभी भौंरे लग गए रसास्वादन करने ,
पुष्पों की मस्ती हंसी ठिठोली , मानो गुम सी हो गई ।
 निरीह कुसुम बेचारे अभी अभी खिले ,
अरे ! आ गया दुष्ट भौरा ,
चूस चूस कर खाने को , सारा रस पान करने को ,
मानो जीवन की संध्या ही हो गई ।

5 comments:

  1. आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 23/02/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

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  2. अतिसुंदर भाव संयोजन .... :)

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  3. आप सब को बहुत बहुत धन्यवाद । यूं ही हौसला अफजाई करते रहें ।

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