जीवन का निश्चित व्रत
साभार - श्री राम लखन जी
भागवत कृपा हुई तो प्राणी को नर जीवन हुआ प्राप्त ।
माया के प्रभाव मे पड़ने से तन मन मे है दुःख व्याप्त ॥
विधिनिषेधमय कर्मों को श्रुति –शास्त्र –संत बतलाते है ।
स्वाध्यायी- सतसंगी जन सार्थक निज समय बिताते है ॥
व्रत पर्वों का आश्रय लेने से बनता है जीवन पावन ।
सेवाव्रती बना मानव वसुधा माता का वीर सुवन ॥
व्रतमय जीवन बन जाने से अन्तर्मन मे शुचिता आती ।
व्याहर शुद्ध हो जाता है उर अंतर प्रीति समा जाती ॥
इस जग को सिया राम मय लख आदर्श युक्त बन जाता है ।
त्रिगुणातीत हुआ वह सेवक प्रभु का ही गुण गाता है ॥
जागो रे मन मूढ़ , तुम्हारे जीवन का निश्चित व्रत हो ।
सांस सांस मे हरी सुमिरण तन मन धन से सेवा रत हो ॥
No comments:
Post a Comment