अम्मा ने कहा था
उषा आज फिर देर से आई । कुछ पूछने को लपकी ही थी कि उसका चेहरा देख रुक गई, वह सिर पर पल्लू रखे चेहरे को छुपाने का प्रयास कर रही थी । वह अंदर आई और चुपचाप बर्तन उठाये और धोने बैठ गई । उसकी एक आँख पूरी काली थी चेहरे पर और गर्दन पर कई निशान थे । कुछ न पूछना ही मुझे ठीक लगा । काम निपटा कर वह अंदर आई । मुझसे रहा न गया मैंने पूंछ ही लिया – “उषा क्या बात है आज फिर तुम्हारे पति ने तुम्हें .......” बात पूरी भी न हो पाई कि वह बीच मे ही काट कर बोली – “ नहीं भाभी ये तो देवता का परसाद है , अम्मा ने कहा था कि पति की हर बात, हर काम उसका परसाद समझ सिर माथे लगाना , वो हो तुम्हारा देवता है ।
ओह माय गॉड
ReplyDeleteबेहद मार्मिक और भारतीय परिपेक्ष में सत्यता।
ये कहानी नहीं वरन सत्य है।
सामंती व्यवस्था पर गंभीर टिप्पणी करती कथा.
ReplyDeleteहम्म , अब इतना भी आस्तिक नहीं बनना चाहिए
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR PRASTUTI
ReplyDeleteपति के अच्छे कर्म और बुरे कर्म में अंतर होता है ....
ReplyDeleteउसकी एक आंख पूरी काली थी
चेहरे पर और गर्दन पर कई निशान थे
उफ़्फ़…!
मूर्ख़ पुरुष औरत पर हाथ क्यों उठाता है ?
आदरणीया अन्नपूर्णा जी
आपकी लघुकथा झकझोरने वाली है...
सादर
शुभकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार