Thursday 22 August 2013

वह बरगद

वह पुराना बरगद
कहते है वह गवाह
उन शूर वीरों का
जो मर मिटे देश पर
इसकी आन औ शान
बचाने की खातिर
जाने कितने यूं ही
लटका दिये गये उन
शाखों पर जो देती
थीं दुलार प्यार व
हरे पत्तों की ठंडी
छाँव, ताजी हवा तब 
वह बरगद जवां था
मजबूती से खड़ा हो
देखता सोचता  था
अधर्मी पापियों एक
दिन वो भी आयेगा
जब तू भी यूं ही
मिटाया जाएगा
मै यहाँ खड़ा हो
देखूँगा तेरा भी अंत।
वह दिन आया जब
आततायियों की
आई बारी ढूंढ-
ढूंढ कर जड़े उखाड़ीं
रानी लक्ष्मी बाई
नाना व तात्या ने
बिठूर की शान बढ़ाई
चल दिये सब वीर कर
न्योछावर अपनी 
ज़िंदगानी, फलसफ़ा
दे प्यार का क्रम यूं
चलता रहे, देश प्रेम 
दिलों मे पलता रहे,
रहे  भेद भाव कभी, 
हो बैर भाई का
भाई से कभी फिर.........
आज हम आजाद हुये 
वो बरगद वही पर
खड़ा था मुसकुराता ।
अब वह बूढ़ा हो चला
हरी पत्तियों का
झुरमुट भी कम हुआ
शाखें भी झुकने लगीं
फिर भी देता रहा वह
अपने प्यार की छाँ
वर्षों का सफर तय
करता पहुंचा वह
अंतिम पड़ाव  पर
प्राण बाकी थे व
कुछ आशा भी शायद
मेरे बच्चे मुझसे करते
स्नेह और सम्मान
देते मुझे,  कैसे त्यागूँ
अपने प्राण ................
एक दिन एक ठिठुरते
कंपकपाते हाथों ने
काट दी जीवन डोर
मै बूढ़ा क्या करता
अलविदा कह चल दिया
पुरानी यादें ले कर
मुस्कुराता बरगद
पड़ा था जमीन पर
जल कर भी दे गया
तपिश और थोड़ी सी
राख ..............

12 comments:

  1. sargarbhit rachna. badhaaee. divyanarmada.blogspot.in par padharen.

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    1. आपका आभार , अपने हमारी रचना को समय दिया ।

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  2. बहुत सुन्दर रचना दिल को छू लिया
    latest post आभार !
    latest post देश किधर जा रहा है ?

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    1. आ0 कालीपद जी आपका हार्दिक आभार ।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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    1. आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

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  4. vriksh sadev dUsro ko sukh dete hai.achcha pryaasa hai.
    Vinnie,

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    1. आ० विनी जी आपका आभार ।

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  5. बहुत ही सुन्दर सृजन...

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    1. आपका हार्दिक आभार आ० चन्दन जी ।

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  6. Replies
    1. आ० भारत भूषण जी आपने मेरी रचना को समय दिया आपका आभार ।

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