Tuesday, 28 May 2013

अज्ञान तिमिर

आकंठ डूबे हुये हो क्यों,
अज्ञान तिमिर गहराता है।
ये तेरा ये मेरा क्यों ,
दिन ढलता जाता है।

क्यों सोई अलसाई  अंखियाँ,
न प्रकाश पुंज दिखाता है ।
जीवन मरण का फंदा ,
आ गलमाल बन लहराता है।

तब क्यों रोते हो,
जब सब छिनता जाता है।
नूतन खोलो ज्ञान चक्षु औ,
हटा दो तिमिर घनेरा।
फैले  पुंज प्रकाश का ,
होवे  दर्शन नयनाभिराम।

16 comments:

  1. अद्भुत प्रेरणा दायक, तिमिर हटे और तेज बढे.....

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुन्दर रचना! अप्रतिम! आपको ढेरों बधाई इस सुन्दर रचनाकर्म हेतु!

    ReplyDelete
  3. सुंदर संदेशमयी रचना ....

    ReplyDelete
  4. आप सभी को हार्दिक धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  5. तलब ही इंसान को तालिब बना कर मंज़िल तक पहुँचाती है

    ReplyDelete
  6. aap ki jitani prshansa ki jaaye kama hai!
    vinnie

    ReplyDelete
  7. . बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  8. उत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद । इसी तरह आप सभी हमारा उत्साह वर्धन करते रहें ।

    ReplyDelete
  9. आपकी यह रचना 31 -05-2013 को http://blogprasaran.blogspot.in पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

    ReplyDelete
  10. नूतन खोलो ज्ञान चक्षु औ,
    हटा दो तिमिर घनेरा।
    फैले पुंज प्रकाश का ,
    होवे दर्शन नयनाभिराम।
    .. बहुत सुन्दर प्रार्थना अन्नपूर्ण जी !

    ReplyDelete
  11. रचना में जीवन-दर्शन का गूढ़ समाहित है. आदरेया, बधाई.....

    ReplyDelete
  12. दिनांक 21/03/2017 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
    आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
    आप की प्रतीक्षा रहेगी...

    ReplyDelete