आकंठ डूबे हुये हो क्यों,
अज्ञान तिमिर गहराता है।
ये तेरा ये मेरा क्यों ,
दिन ढलता जाता है।
क्यों सोई अलसाई अंखियाँ,
न प्रकाश पुंज दिखाता है ।
जीवन मरण का फंदा ,
आ गलमाल बन लहराता है।
तब क्यों रोते हो,
जब सब छिनता जाता है।
नूतन खोलो ज्ञान चक्षु औ,
हटा दो तिमिर घनेरा।
फैले पुंज प्रकाश का ,
होवे दर्शन नयनाभिराम।
अज्ञान तिमिर गहराता है।
ये तेरा ये मेरा क्यों ,
दिन ढलता जाता है।
क्यों सोई अलसाई अंखियाँ,
न प्रकाश पुंज दिखाता है ।
जीवन मरण का फंदा ,
आ गलमाल बन लहराता है।
तब क्यों रोते हो,
जब सब छिनता जाता है।
नूतन खोलो ज्ञान चक्षु औ,
हटा दो तिमिर घनेरा।
फैले पुंज प्रकाश का ,
होवे दर्शन नयनाभिराम।
अद्भुत प्रेरणा दायक, तिमिर हटे और तेज बढे.....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना! अप्रतिम! आपको ढेरों बधाई इस सुन्दर रचनाकर्म हेतु!
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteसुंदर संदेशमयी रचना ....
ReplyDeleteआप सभी को हार्दिक धन्यवाद ।
ReplyDeletenice one.
ReplyDeletePlz Visit my blogs.
तलब ही इंसान को तालिब बना कर मंज़िल तक पहुँचाती है
ReplyDeleteaap ki jitani prshansa ki jaaye kama hai!
ReplyDeletevinnie
. बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteउत्साह वर्धन के लिए धन्यवाद । इसी तरह आप सभी हमारा उत्साह वर्धन करते रहें ।
ReplyDeleteसुन्दर कृति.
ReplyDeleteआपकी यह रचना 31 -05-2013 को http://blogprasaran.blogspot.in पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteनूतन खोलो ज्ञान चक्षु औ,
ReplyDeleteहटा दो तिमिर घनेरा।
फैले पुंज प्रकाश का ,
होवे दर्शन नयनाभिराम।
.. बहुत सुन्दर प्रार्थना अन्नपूर्ण जी !
रचना में जीवन-दर्शन का गूढ़ समाहित है. आदरेया, बधाई.....
ReplyDeleteदिनांक 21/03/2017 को...
ReplyDeleteआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...