Saturday 28 January 2012

एक दिन के जांबाज़


एक  दिन के जांबाज़

 जब वे पैदा हुए खुशियाँ फैली पूरे घर आँगन ,
छोटे छोटे कदमों से जब चले वो खिल उठा घर आँगन,
जब वे बोले कुछ तोतली भाषा में ,
बाबा मुझको भी पढ्ना है ,
मुझको भी बड़ा होकर एक सिपाही बनना है ,
सुनकर फूले नहीं समाये माँ बाबा ,
छाती चौड़ी हो गई ,
उम्र दूनी हो गई ,
खुशी खुशी पढ़ने भेजा ,
सोचा लाल बड़ा अफसर बनेगा ,
इस जीवन का सहारा बनेगा ,
जब वे बड़े हुए ,
पहनी वर्दी  मन मे जोश भरा था
अरमान बड़े थे ,
हौसले बुलंद थे,
कसम खाई भारत माँ की रक्षा की ,
तिरंगा हांथ मे ले ,
चल पड़े जय भारत का उद्घोष लगाते ,
रेतीले रेगिस्तान में , कडकड़ाती ठंड में ,
चिलचिलाती धूप मे ,लू के थपेड़ों मे ,
बर्फीले तूफान मे , रुकती जमती साँसों के साथ ,
जमते  हाथों  काँपती उँगलियों से  थामे अपना शस्त्र ,

आगे  ही आगे अपने  पथ पर निरंतर ,

अचानक दुशमन ने हमला बोला ,

हमारे जाँबाज जुट गए ,

अपना कर्तव्य निभाने को ,

माँ से किया वादा निभाने को ,

धरती माँ का कर्ज चुकाने को ,

तिरंगे की शान बढ़ाने को ,

सोते नेताओं की जान  बचाने को,

भाई बंधुओं की जान बचाने को,

ताकि हम सुरक्षित रहे ,

सब हँसते गाते रहे सदा ,

खुद का सीना आगे कर ,

खाई गोली  फिर भी परचम ऊंचा रखा ,

चल दिये वे सदा के लिए ,

 वे एक दिन के जाँबाज ,

आया गणतन्त्र   दिवस ,

आया स्वतंत्रता दिवस ,

बहुत याद आए वे ,

एक दिन के जाँबाज ।"
 
मेरा  कोटिश  नमन  उन सभी वर्दी धारी जवानों के लिए जिन्होने देश की सुरक्षा के लिए सौगंध ली है यही काफी है ।

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