एक दिन के जांबाज़
जब वे पैदा हुए खुशियाँ फैली पूरे घर आँगन ,
छोटे छोटे कदमों से जब चले वो खिल उठा घर आँगन, जब वे बोले कुछ तोतली भाषा में ,
बाबा मुझको भी पढ्ना है ,
मुझको भी बड़ा होकर एक सिपाही बनना है ,
सुनकर फूले नहीं समाये माँ बाबा ,
छाती चौड़ी हो गई ,
उम्र दूनी हो गई ,
खुशी खुशी पढ़ने भेजा ,
सोचा लाल बड़ा अफसर बनेगा ,
इस जीवन का सहारा बनेगा ,
जब वे बड़े हुए ,
पहनी वर्दी मन मे जोश भरा था
अरमान बड़े थे ,
हौसले बुलंद थे,
कसम खाई भारत माँ की रक्षा की ,
तिरंगा हांथ मे ले ,
चल पड़े जय भारत का उद्घोष लगाते ,
रेतीले रेगिस्तान में , कडकड़ाती ठंड में ,
चिलचिलाती धूप मे ,लू के थपेड़ों मे ,
बर्फीले तूफान मे , रुकती जमती साँसों के साथ ,
जमते हाथों काँपती उँगलियों से थामे अपना शस्त्र ,
आगे ही आगे अपने पथ पर निरंतर ,
अचानक दुशमन ने हमला बोला ,
हमारे जाँबाज जुट गए ,
अपना कर्तव्य निभाने को ,
माँ से किया वादा निभाने को ,
धरती माँ का कर्ज चुकाने को ,
तिरंगे की शान बढ़ाने को ,
सोते नेताओं की जान बचाने को,
भाई बंधुओं की जान बचाने को,
ताकि हम सुरक्षित रहे ,
सब हँसते गाते रहे सदा ,
खुद का सीना आगे कर ,
खाई गोली फिर भी परचम ऊंचा रखा ,
चल दिये वे सदा के लिए ,
वे एक दिन के जाँबाज ,
आया गणतन्त्र दिवस ,
आया स्वतंत्रता दिवस ,
बहुत याद आए वे ,
एक दिन के जाँबाज ।"
मेरा कोटिश नमन उन सभी वर्दी धारी जवानों के लिए जिन्होने देश की सुरक्षा के लिए सौगंध ली है यही काफी है ।
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