Friday 6 September 2013

चाँद हौले से मुस्का दिया - कविता

अंधकार गहरा चला अब  
सितारों से भर चला नभ  
चाँद हौले से मुस्का दिया
अप्रतिम अलौकिक सुंदरता ...................

सुंदरी की खुली अलकें सी
चाँदनी भी छिटकने लगी
कण कण दुग्ध मे नहाया सा
प्रफुल्लित हो चला मन
लगता था जो पराया सा ........................

तप्त धरा सी वो
पाई जिसने शीतलता 
नीरवता तोड़ता विहग
आवरण जो असत्य का ,
अंधकार वो अहम का
हौले हौले .......................
चेतना लौटी प्रबुद्धता आई
नैसर्गिक अविचलता लाई
प्रेम और विश्वास का
स्नेह और उल्लास का
सागर लेने लगा हिलोरें....................................   





15 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  2. निशा में चाँद की अनमोल छटा आपने बिखेरी है।
    इस बहुत ही सुन्दर कविता के लिए, बधाई आपको।

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  3. आशा और विश्वास को सँजोती बहुत सुंदर रचना ! बधाई आपको !

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  4. बहोत सुन्दर .. बधाई आप को

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  5. सुंदर प्रस्तुति,आप को गणेश चतुर्थी पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें ,श्री गणेश भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे आप के सम्पुर्ण दु;खों का नाश करें,और अपनी कृपा सदा आप पर बनाये रहें...

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  6. आप सभी को हार्दिक आभार ।

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  7. बहुत मनोहारी प्रस्तुति ..आपकी इस उत्कृष्ट रचना की प्रविष्टि कल रविवार, 15 सितम्बर 2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर भी... कृपया पधारें ... औरों को भी पढ़ें |

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    1. आदरणीया शलिनी जी आपका आभार ।

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  8. चेतना लौटी प्रबुद्धता आई
    नैसर्गिक अविचलता लाई
    प्रेम और विश्वास का
    स्नेह और उल्लास का
    सागर लेने लगा हिलोरें....

    सुन्दर भावपूर्ण रचना ... प्राकृति का सौंदर्य समेटे ...

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    1. आदरणीय दिगंबर जी आपका आभार ।

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  9. ब्लॉग प्रसारण लिंक 13 - चाँद हौले से मुस्का दिया [अनुपमा बाजपाई]
    वाह वाह आदरणीय अन्नपूर्णा जी वाह क्या कहने लाजवाब कविता चाँद की कृतियों का कितना सुन्दर वर्णन किया है आपने मन प्रसन्न हो उठा पढ़कर ढेरों बधाई

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    1. आदरणीय अभिनव अरुण जी आपका हार्दिक आभार ।

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  10. अभिव्यक्ति तो खूबसूरत है ही उसके साथ खूबसूरत शब्द चयन ने कविता को चार चाँद लगा दिए…

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