अंधकार गहरा चला अब
सितारों से भर चला नभ
चाँद हौले से मुस्का दिया
अप्रतिम अलौकिक सुंदरता ...................
सुंदरी की खुली अलकें सी
चाँदनी भी छिटकने लगी
कण कण दुग्ध मे नहाया सा
प्रफुल्लित हो चला मन
लगता था जो पराया सा ........................
तप्त धरा सी वो
पाई जिसने शीतलता
नीरवता तोड़ता विहग
आवरण जो असत्य का ,
अंधकार वो अहम का
हौले हौले .......................
चेतना लौटी प्रबुद्धता आई
नैसर्गिक अविचलता लाई
प्रेम और विश्वास का
स्नेह और उल्लास का
सागर लेने लगा हिलोरें....................................
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
ReplyDeletevery well written.
ReplyDeleteनिशा में चाँद की अनमोल छटा आपने बिखेरी है।
ReplyDeleteइस बहुत ही सुन्दर कविता के लिए, बधाई आपको।
sundar.....
ReplyDeleteआशा और विश्वास को सँजोती बहुत सुंदर रचना ! बधाई आपको !
ReplyDeleteबहोत सुन्दर .. बधाई आप को
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति,आप को गणेश चतुर्थी पर मेरी हार्दिक शुभकामनायें ,श्री गणेश भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे आप के सम्पुर्ण दु;खों का नाश करें,और अपनी कृपा सदा आप पर बनाये रहें...
ReplyDeleteआप सभी को हार्दिक आभार ।
ReplyDeleteबहुत मनोहारी प्रस्तुति ..आपकी इस उत्कृष्ट रचना की प्रविष्टि कल रविवार, 15 सितम्बर 2013 को ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in पर भी... कृपया पधारें ... औरों को भी पढ़ें |
ReplyDeleteआदरणीया शलिनी जी आपका आभार ।
Deleteचेतना लौटी प्रबुद्धता आई
ReplyDeleteनैसर्गिक अविचलता लाई
प्रेम और विश्वास का
स्नेह और उल्लास का
सागर लेने लगा हिलोरें....
सुन्दर भावपूर्ण रचना ... प्राकृति का सौंदर्य समेटे ...
आदरणीय दिगंबर जी आपका आभार ।
Deleteब्लॉग प्रसारण लिंक 13 - चाँद हौले से मुस्का दिया [अनुपमा बाजपाई]
ReplyDeleteवाह वाह आदरणीय अन्नपूर्णा जी वाह क्या कहने लाजवाब कविता चाँद की कृतियों का कितना सुन्दर वर्णन किया है आपने मन प्रसन्न हो उठा पढ़कर ढेरों बधाई
आदरणीय अभिनव अरुण जी आपका हार्दिक आभार ।
Deleteअभिव्यक्ति तो खूबसूरत है ही उसके साथ खूबसूरत शब्द चयन ने कविता को चार चाँद लगा दिए…
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